वो चली दो कदम थी मेरे लिए... ये क्या काफी न था
साथ न सही जिंदगी भर का... दो पल का भी साथ कोई कम नहीं होता...
होता अगर मुकद्दर में साथ उसका... तो आज उसका कोई और हमराज न होता...
मुझे, उससे गिला नहीं मेरे मालिक...
गिला खुद से है कि मैं उसके काबिल न बन सका....
कमाने को तो दो-चार रोटी भर का कमा लेता है हर कोई...
कमा मैं भी लेता...
अब किससे गिला करूं, किसको सुनाऊं, किससे रोऊं
जब वो ही चला गया...
जो मुझको चुप करा लेता...