Monday, July 30, 2012

पटरियां- 2


हम पटरियां ही थे दरअसल
जो कभी न मिले
पर हमेशा साथ चले
और मिलें भी न शायद...

हम हमेशा पास-पास रहे
एक साथ चले, एक साथ मुड़े
पर कभी नहीं तोड़ी मर्यादाएं
नहीं भूलीं अपनी सीमाएं
क्यूंकि...

हमें सबके चेहरे पर 
मुस्कान लानी थी
रूठों को मनाना था
बिछड़ों को मिलाना था
इसलिए...

हम कभी नहीं मिले
पर हम मिलेंगे साथी
जरूर मिलेंगे

क्षितिज के उस पार
जहां न कोई
स्टेशन होगा
न होगी कोई ट्रेन
वहां से न कोई आने वाला होगा 
न कोई जाने वाला होगा
हम वहीं मिलेंगे साथी

पटरियां मिलेंगी
जरूर मिलेंगी!!!

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