वो पेड़ जो फल देता था कभी
घर में चूल्हा जलाने की खातिर कट गया अभी-अभी
क्यूंकि... फलों से पेट नहीं भरता था बच्चों का
औप उनके खेलने के लिए जगह भी चाहिए थी
अब बच्चे नहीं रोयेंगे भूखे
और न ही जागेंगे रात भर...
पर क्या उन्हें वो ठंडी छांव नसीब होगी
क्या वो फिर लुका-छिपी का खेल-खेल पाएंगे।
जब घर में मां डांटती थी तो उसकी ही गोद बहलाया करती थी
अब उसे मजबूरन मन बहलाने बाजार जाना पड़ेगा
वहां जाकर दुनिया से दो-चार होना पड़ेगा।
दुनिया तो बाजार से भरी पड़ी है
वो भी खरीददार बन जाएगा
और जब खरीदते-खाते बीमार हो जाएगा
फिर वही फल बाजार से खरीद कर खाएगा
जो पहले उसके आंगन में पैदा हुआ करते थे।।
घर में चूल्हा जलाने की खातिर कट गया अभी-अभी
क्यूंकि... फलों से पेट नहीं भरता था बच्चों का
औप उनके खेलने के लिए जगह भी चाहिए थी
अब बच्चे नहीं रोयेंगे भूखे
और न ही जागेंगे रात भर...
पर क्या उन्हें वो ठंडी छांव नसीब होगी
क्या वो फिर लुका-छिपी का खेल-खेल पाएंगे।
जब घर में मां डांटती थी तो उसकी ही गोद बहलाया करती थी
अब उसे मजबूरन मन बहलाने बाजार जाना पड़ेगा
वहां जाकर दुनिया से दो-चार होना पड़ेगा।
दुनिया तो बाजार से भरी पड़ी है
वो भी खरीददार बन जाएगा
और जब खरीदते-खाते बीमार हो जाएगा
फिर वही फल बाजार से खरीद कर खाएगा
जो पहले उसके आंगन में पैदा हुआ करते थे।।
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