Monday, December 13, 2010

अभी दिल्ली है दूर......

बहुत पहले सोचा था कभी
कि 'वो' मिलेगी जब, तो...
खुल के जियेंगे सभी

'वो' मिल तो गई, लेकिन
जो सोचा था वो मेरा न हुआ
एक अध्याय बाकी है अभी
जो पूरा न हुआ

पूछो जो मन से तो यही आवाज आती है
अभी तो पूरी जिंदगी बाकी है।
'वो' जाम है तो क्या
तू भी तो साकी है।

उसने मिलते ही एक बात कही थी
वो बात अक्सर याद आती है

कि, मत होना मेरे मिलने के मद में चूर....
क्योंकि,
मैं तो हूं महज एक शुरूआत, अभी दिल्ली है दूर......।

3 comments:

  1. बहुत खूब...लो मिली तो सही...लेकिन काफी कुछ छूट गया पीछे....अब महसूस होता है कि बहुत कुछ छूट गया है पीछे...

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  2. शुरूआत हो चुकी है तो मंजिल मिलेगी ही....दिल्ली दूर नहीं रहेगी...
    बहुत अच्छी रचना...यूं ही लिखते रहिए
    यहां भी आइए...
    http://veenakesur.blogspot.com/

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  3. कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
    कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
    और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
    फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं
    आशा है की आगे भी मुझे असे ही नई पोस्ट पढने को मिलेंगी
    आपका ब्लॉग पसंद आया...इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-



    बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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