बहुत पहले सोचा था कभी
कि 'वो' मिलेगी जब, तो...
खुल के जियेंगे सभी
'वो' मिल तो गई, लेकिन
जो सोचा था वो मेरा न हुआ
एक अध्याय बाकी है अभी
जो पूरा न हुआ
पूछो जो मन से तो यही आवाज आती है
अभी तो पूरी जिंदगी बाकी है।
'वो' जाम है तो क्या
तू भी तो साकी है।
उसने मिलते ही एक बात कही थी
वो बात अक्सर याद आती है
कि, मत होना मेरे मिलने के मद में चूर....
क्योंकि,
मैं तो हूं महज एक शुरूआत, अभी दिल्ली है दूर......।
बहुत खूब...लो मिली तो सही...लेकिन काफी कुछ छूट गया पीछे....अब महसूस होता है कि बहुत कुछ छूट गया है पीछे...
ReplyDeleteशुरूआत हो चुकी है तो मंजिल मिलेगी ही....दिल्ली दूर नहीं रहेगी...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...यूं ही लिखते रहिए
यहां भी आइए...
http://veenakesur.blogspot.com/
कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
ReplyDeleteकुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं
आशा है की आगे भी मुझे असे ही नई पोस्ट पढने को मिलेंगी
आपका ब्लॉग पसंद आया...इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!