Thursday, April 29, 2021

कोरोना... एक प्रलय ही तो है...

हमने कभी प्रलय नहीं देखी थी

नहीं देखे थे ऐसे डरावने मंजर

शवों की ऐसी दुर्गति नहीं देखी थी

लंबी लाइनें तो बहुत देखी थीं लेकिन

लाशों की इतनी लंबी-लंबी लाइनें नहीं देखी थीं

सिस्टम का ऐसा व्यवहार नहीं देखा था

इंसान को इतना लाचार नहीं देखा था

नहीं झेला था कभी श्मशान का इतना धुआं

इतनी कब्रें, इतनी चिताएं... फिर भी श्मशान पर इंतजार नहीं झेला था

कोरोना ने इन सबसे एक झटके में रू-ब-रू करा दिया

कोरोना... एक प्रलय ही तो है...

फिर भी एक उम्मीद है कि...

जल्द छंटेगा ये दर्द का कुहांसा

थमेंगी लोगों की चित्कार

खत्म होगी ये जद्दोजहद

खत्म होगा ये लंबा इंतजार...

टेस्ट के लिए...

रिपोर्ट के लिए...

भर्ती के लिए...

दवा के लिए...

इंजेक्शन के लिए...

ऑक्सीजन के लिए...

प्लाज्मा के लिए...

और अंत में अंतिम संस्कार के लिए...

Wednesday, August 12, 2015

यह कैसी आजादी???



भारत देश अपना 68वां स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाने की तैयारी कर रहा है। 15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजों की हुकूमत से आजाद हुआ था, लेकिन इन दिनों जब भी मैं कहीं बाहर निकलता हूं एक सवाल मेरे दिल और दिमाग पर हावी हो जाता है, यह कैसी आजादी???

अगस्त का महीना आते ही पूरे भारत में सुरक्षा बल सक्रिय हो जाते हैं, जगह-जगह चेकिंग होने लगती है। लोगों से गुजारिश की जाती है कि भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें, स्वतंत्रता दिवस पर संयम बरतें।
काहे भाई, काहे न मनाएं जश्न, काहे न करें गैदरिंग, काहे न करें हो-हल्ला, ये हमारा स्वतंत्रता दिवस है यानि हमारी आजादी का प्रतीक। आखिर, यह डर क्यों है??? कहा जाता है कि, भारत एक शक्तिशाली, युवा और तेजी से आगे बढ़ता देश है तो फिर यह डर कैसा है जो हमें स्वतंत्रता दिवस पर आजादी से कहीं भी घूमने पर रोकने की कोशिश करता है???
अगर हम सच में आजाद हैं, तो हमारी सरकार को यह डर भी खत्म करना चाहिए, ताकि देश का हर नागरिक तिरंगा लेकर अपनी आजादी का जश्न मना सके!!!


Saturday, September 29, 2012

वो चली दो कदम थी मेरे लिए...


वो चली दो कदम थी मेरे लिए... ये क्या काफी न था

साथ न सही जिंदगी भर का... दो पल का भी साथ कोई कम नहीं होता...

होता अगर मुकद्दर में साथ उसका... तो आज उसका कोई और हमराज न होता...

मुझे, उससे गिला नहीं मेरे मालिक...

गिला खुद से है कि मैं उसके काबिल न बन सका....

कमाने को तो दो-चार रोटी भर का कमा लेता है हर कोई...

कमा मैं भी लेता...

अब किससे गिला करूं, किसको सुनाऊं, किससे रोऊं

जब वो ही चला गया...

जो मुझको चुप करा लेता...

Sunday, September 23, 2012

पेड़

वो पेड़ जो फल देता था कभी
घर में चूल्हा जलाने की खातिर कट गया अभी-अभी
क्यूंकि... फलों से पेट नहीं भरता था बच्चों का
औप उनके खेलने के लिए जगह भी चाहिए थी
अब बच्चे नहीं रोयेंगे भूखे
और न ही जागेंगे रात भर...

पर क्या उन्हें वो ठंडी छांव नसीब होगी
क्या वो फिर लुका-छिपी का खेल-खेल पाएंगे।
जब घर में मां डांटती थी तो उसकी ही गोद बहलाया करती थी
अब उसे मजबूरन मन बहलाने बाजार जाना पड़ेगा
वहां जाकर दुनिया से दो-चार होना पड़ेगा।

दुनिया तो बाजार से भरी पड़ी है
वो भी खरीददार बन जाएगा
और जब खरीदते-खाते बीमार हो जाएगा
फिर वही फल बाजार से खरीद कर खाएगा
जो पहले उसके आंगन में पैदा हुआ करते थे।।

Tuesday, September 4, 2012

न होता विज्ञापन तो क्या होता...

न होता विज्ञापन तो क्या होता...

न हाथ में पेस्ट होता 

न खाने में टेस्ट होता

और न बालों में महकता तेल होता...

न होता विज्ञापन तो क्या होता...


इसिलए तो कहते हैं यारों..
.
एड चाहे पेस्ट का हो तेल का

वो चाहे फ्रिज का हो या एसी, कूलर का...

हर एक एड जरूरी होता है....

Monday, July 30, 2012

लाशों का जंगल और मैं...


लाशों के इस जंगल में 
एक लाश मेरी भी थी और उसकी भी...

बड़ी खुशहाल थी ये दुनिया
उस 'सुनामी' से पहले
जो आज बंजर हो चली

यहां भी होती थी होली और दीवाली
और जमकर मनाई जाती थी ईद
पर एक तूफान आया और
सब खतम...

बचा तो बस
लाशों का ढेर
मातम का शोर
दूर तक पसरा मौत का सन्नाटा
और...
कुछ जिंदा लाशें

जो मर गए वो तो जिंदा हो गए कहीं
जो जिंदा बचे वो मर गए 
हमेशा... हमेशा के लिए

अब न कोई दु:ख है न कोई चिंता
बस...
अपनी लाश का भारी बोझ
खुद ढोए जा रहे हैं वो लोग
अपने आखिरी सफर पर 
खुद चले जा रहे हैं... वो लोग

और वो आखिरी सफर..
न जाने कब 
और कहां
खतम होगा!!!

पटरियां- 2


हम पटरियां ही थे दरअसल
जो कभी न मिले
पर हमेशा साथ चले
और मिलें भी न शायद...

हम हमेशा पास-पास रहे
एक साथ चले, एक साथ मुड़े
पर कभी नहीं तोड़ी मर्यादाएं
नहीं भूलीं अपनी सीमाएं
क्यूंकि...

हमें सबके चेहरे पर 
मुस्कान लानी थी
रूठों को मनाना था
बिछड़ों को मिलाना था
इसलिए...

हम कभी नहीं मिले
पर हम मिलेंगे साथी
जरूर मिलेंगे

क्षितिज के उस पार
जहां न कोई
स्टेशन होगा
न होगी कोई ट्रेन
वहां से न कोई आने वाला होगा 
न कोई जाने वाला होगा
हम वहीं मिलेंगे साथी

पटरियां मिलेंगी
जरूर मिलेंगी!!!