Saturday, September 29, 2012

वो चली दो कदम थी मेरे लिए...


वो चली दो कदम थी मेरे लिए... ये क्या काफी न था

साथ न सही जिंदगी भर का... दो पल का भी साथ कोई कम नहीं होता...

होता अगर मुकद्दर में साथ उसका... तो आज उसका कोई और हमराज न होता...

मुझे, उससे गिला नहीं मेरे मालिक...

गिला खुद से है कि मैं उसके काबिल न बन सका....

कमाने को तो दो-चार रोटी भर का कमा लेता है हर कोई...

कमा मैं भी लेता...

अब किससे गिला करूं, किसको सुनाऊं, किससे रोऊं

जब वो ही चला गया...

जो मुझको चुप करा लेता...

Sunday, September 23, 2012

पेड़

वो पेड़ जो फल देता था कभी
घर में चूल्हा जलाने की खातिर कट गया अभी-अभी
क्यूंकि... फलों से पेट नहीं भरता था बच्चों का
औप उनके खेलने के लिए जगह भी चाहिए थी
अब बच्चे नहीं रोयेंगे भूखे
और न ही जागेंगे रात भर...

पर क्या उन्हें वो ठंडी छांव नसीब होगी
क्या वो फिर लुका-छिपी का खेल-खेल पाएंगे।
जब घर में मां डांटती थी तो उसकी ही गोद बहलाया करती थी
अब उसे मजबूरन मन बहलाने बाजार जाना पड़ेगा
वहां जाकर दुनिया से दो-चार होना पड़ेगा।

दुनिया तो बाजार से भरी पड़ी है
वो भी खरीददार बन जाएगा
और जब खरीदते-खाते बीमार हो जाएगा
फिर वही फल बाजार से खरीद कर खाएगा
जो पहले उसके आंगन में पैदा हुआ करते थे।।

Tuesday, September 4, 2012

न होता विज्ञापन तो क्या होता...

न होता विज्ञापन तो क्या होता...

न हाथ में पेस्ट होता 

न खाने में टेस्ट होता

और न बालों में महकता तेल होता...

न होता विज्ञापन तो क्या होता...


इसिलए तो कहते हैं यारों..
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एड चाहे पेस्ट का हो तेल का

वो चाहे फ्रिज का हो या एसी, कूलर का...

हर एक एड जरूरी होता है....