Monday, July 30, 2012

लाशों का जंगल और मैं...


लाशों के इस जंगल में 
एक लाश मेरी भी थी और उसकी भी...

बड़ी खुशहाल थी ये दुनिया
उस 'सुनामी' से पहले
जो आज बंजर हो चली

यहां भी होती थी होली और दीवाली
और जमकर मनाई जाती थी ईद
पर एक तूफान आया और
सब खतम...

बचा तो बस
लाशों का ढेर
मातम का शोर
दूर तक पसरा मौत का सन्नाटा
और...
कुछ जिंदा लाशें

जो मर गए वो तो जिंदा हो गए कहीं
जो जिंदा बचे वो मर गए 
हमेशा... हमेशा के लिए

अब न कोई दु:ख है न कोई चिंता
बस...
अपनी लाश का भारी बोझ
खुद ढोए जा रहे हैं वो लोग
अपने आखिरी सफर पर 
खुद चले जा रहे हैं... वो लोग

और वो आखिरी सफर..
न जाने कब 
और कहां
खतम होगा!!!

पटरियां- 2


हम पटरियां ही थे दरअसल
जो कभी न मिले
पर हमेशा साथ चले
और मिलें भी न शायद...

हम हमेशा पास-पास रहे
एक साथ चले, एक साथ मुड़े
पर कभी नहीं तोड़ी मर्यादाएं
नहीं भूलीं अपनी सीमाएं
क्यूंकि...

हमें सबके चेहरे पर 
मुस्कान लानी थी
रूठों को मनाना था
बिछड़ों को मिलाना था
इसलिए...

हम कभी नहीं मिले
पर हम मिलेंगे साथी
जरूर मिलेंगे

क्षितिज के उस पार
जहां न कोई
स्टेशन होगा
न होगी कोई ट्रेन
वहां से न कोई आने वाला होगा 
न कोई जाने वाला होगा
हम वहीं मिलेंगे साथी

पटरियां मिलेंगी
जरूर मिलेंगी!!!