Wednesday, April 28, 2010

पटरियां

हम पटरियां है दरअसल
जो कभी नहीं मिलतीं
पर हमेशा साथ-साथ ही चलती हैं।
यही उनकी नियति बन चुकी है
कि
साथ होके भी बहुत दूर रहना है।
वो मिलना भी बहुत चाहती हैं ;
दूर से लोगों को
मिलती हुई महसूस भी होती हैं
पर चाहकर भी वो
नहीं छू सकती हैं एक दूसरे को
क्यूंकि
वो जानती हैं ,कि
जिस दिन उन दोनों ने
अपनी ख़ुशी के लिए
एक दूसरे को छुआ
उनके सहारे दौड़ने वाली रेलगाड़ी
जो बहुतों को अपनों से मिलाती है
बिछड़ों का दीदार कराती है ;
चारों खाने चित्त हो जायेगी
jiske liye उन दोनों ने इतना कष्ट उठाया है
वो लक्ष्य एकाएक मिटटी में मिल जायेगा
यही सोचकर
दोनों पटरियां
अपना कर्तव्य निभाते हुए
जीवन बिताती रहती हैं।
और ऐसा करते हुए
दोनों पटरियां
जीवन भर साथ ही रहती हैं
पर एक भी पल को मिल नहीं पाती हैं।

4 comments:

  1. gheri samvedna rakhten hai aap
    umdaa
    Dr.Ajeet
    www.shesh-fir.blogspot.com

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  2. kisi ko milane ke liye kisi ko kurbani deni hi padti hai. bahut achchha hai.

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